Thursday, May 27, 2010

जावेद अख्तर


This is a song which has been on my hit list ever since I was single, in a relationship, engaged and now married! Its funny to go back and see how situations make the same thing appear so differently! All I can say is one has to be a true genius to make such a wonderful poem which never appears bad no matter what the situation is!! :-)

खामोशियाँ गुनगना ने लगी
तनहाइयाँ मुस्कुराने लगी
सरगोशी करे हवा, चुपके से मुझे कहा
दिल का हाल बता, दिलबर से ना छुपा
सुन के बात ये शर्म से मेरी आँखें झुक जाने लगी

जाग उठा है सपना, किसका मेरी इन आँखों में
एक नयी ज़िन्दगी शामिल हो रही सासों में
किसी की आंधी है सदा हवाओं में
किसी की बाते है दबे से होटों में
रात दिन मेरी आँखों में कोई
परछाई लहराने लगी

खामोशियाँ गुनगना ने लगी
तनहाइयाँ मुस्कुराने लगी
दिल का ये कारवां, युही था रवा दावा
मंजिल ना हमसफ़र, लेकिन मैं मेहरबान
तेरी वो एक नज़र कर गयी असर
दुनिया सवर जाने लगी

शर्मो हया से कहदो खुदा हाफ़िज़ ओ मेरी जाना
है घडी मिलन की खुदारा लौट के ना आना
हे रात का पर्दा हमारी ही खातिर
सजे है हम भी तो तुम्हारी ही खातिर
जैसे जैसे तुम पास आते हो साँसे रुक जाने लगी

भगवानदास माहौर (स्मृतिदिन १२ मार्च १९७९)

में विद्रोही हूँ उत्पीड़क सत्ता को ललकार रहा हूँ  खूब समझता हूँ में खुद ही अपनी मौत पुकार रहा हूँ  मेरे शोणितकी लालीसे कुछ तो लाल धरा हो...