में विद्रोही हूँ उत्पीड़क सत्ता को ललकार रहा हूँ 
खूब समझता हूँ में खुद ही अपनी मौत पुकार रहा हूँ 
मेरे शोणितकी लालीसे कुछ तो लाल धरा होगी ही | 
मेरे वर्त्तनसे परिवर्तित कुछ तो परंपरा होगी ही || 
में जो उल्टे सीधे स्वरसे गाता रहता करुण कथाएँ | 
सुनकर अकुलाती ही होंगी, व्यथितोंकी चिरमूक व्यथाएँ || 
मेरे स्वरसे कुछ तो मुखरित जगती दुःखभरा होगी ही | 
मेरे शोणितकी लालीसे कुछ तो लाल धरा होगी ही || 
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