Saturday, April 17, 2010

गुलज़ार



आप की आँखों में कुछ महेके हुए से राज़ है
आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज़ है

लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं
आप की आँखों में क्या साहिल भी मिलते है कहीं
आप की खामोशियाँ भी आप की आवाज़ है

आप की बातों में फिर कोई शरारत तो नहीं
बेवजा तारीफ़ करना आप की आदत तो नहीं
आप की बदमाशियों के यह नए अंदाज़ है

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भगवानदास माहौर (स्मृतिदिन १२ मार्च १९७९)

में विद्रोही हूँ उत्पीड़क सत्ता को ललकार रहा हूँ  खूब समझता हूँ में खुद ही अपनी मौत पुकार रहा हूँ  मेरे शोणितकी लालीसे कुछ तो लाल धरा हो...