Thursday, January 27, 2011

तकदीर


"तकदीर के खेल से निराश नहीं होते, जिंदगी में कभी उदास नहीं होतेl
हाथों की लकीरों पे इतना यकीं मत कर, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होतेl"

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भगवानदास माहौर (स्मृतिदिन १२ मार्च १९७९)

में विद्रोही हूँ उत्पीड़क सत्ता को ललकार रहा हूँ  खूब समझता हूँ में खुद ही अपनी मौत पुकार रहा हूँ  मेरे शोणितकी लालीसे कुछ तो लाल धरा हो...